आयुर्वेद में दिनचर्या
(दैनिक जीवनशैली) का विशेष महत्व है। प्रातःकाल उठकर तांबे के पात्र में रखा जल
पीना न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि यह त्रिदोषों — वात, पित्त
और कफ — को संतुलित करने में भी सहायक होता है।
📜 शास्त्रीय संदर्भ
आयुर्वेदिक ग्रंथों में
ताम्रजल का उल्लेख स्पष्ट रूप से मिलता है:
"ताम्रपात्रस्थं जलं रात्रौ स्थितं पिबेन्निशि।
दोषत्रयं शमं याति दीपनं
कफवातनुत्॥"
— भैषज्य रत्नावली, जलवर्ग
इस श्लोक के अनुसार, रातभर
तांबे के पात्र में रखा जल प्रातःकाल पीने से त्रिदोषों का शमन होता है, अग्नि
(पाचन शक्ति) प्रदीप्त होती है, और कफ-वात विकारों में लाभ मिलता है।
🧪 ताम्रजल के आधुनिक लाभ
विज्ञान भी अब आयुर्वेद की
इस परंपरा को मान्यता दे रहा है। तांबे में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल गुण होते
हैं, जो जल को शुद्ध करते हैं और निम्नलिखित लाभ प्रदान करते हैं:
- ✔️ पाचन तंत्र को सक्रिय करता है
- ✔️ यकृत (लिवर) को उत्तेजित करता है
- ✔️ त्वचा को चमकदार बनाता है
- ✔️ मोटापा नियंत्रित करने में सहायक
- ✔️ हृदय स्वास्थ्य को बेहतर करता है
🕰️ प्रयोग विधि
- रात में तांबे के पात्र में स्वच्छ जल भरें
- पात्र को ढककर रखें, प्लास्टिक का ढक्कन न लगाएं
- सुबह उठते ही बिना ब्रश किए उस जल को पी लें
- मात्रा: 250–500 ml पर्याप्त है
- नियमितता: कम से कम 30 दिन तक करें, फिर 7 दिन का विराम लें
⚠️ सावधानियाँ
- अम्लपित्त (Acidity) वाले व्यक्ति कम मात्रा में लें
- तांबे का पात्र रोज़ साफ करें — नींबू या इमली
से
- अत्यधिक मात्रा में सेवन न करें — तांबा भारी
धातु है
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Ayurveda